Sunday, March 4, 2012

भूली बिसरी यादें जिन्हें याद कर मैं आज भी मुस्कराता हूँ :)

बचपन से ही मैं गणित में कमजोर और  मटरगस्ती में आगे रहा हूँ | यादों के बंडल को  जब खंगालता हूँ तो  कुछ बातें जस के तस मानसिक पटल पर आ जाते हैं |
"पड़ोस के मुखिया जी के यहाँ शरीफा का पेड़ था | मैं और बबलू हर रोज ललचाई नजरों से उसे देखते, पके हुए शरीफे हलके पीले रंग के मानो अमृत फल हों| उस दोपहरी मौका पा कर हमने हमला बोल दिया | जेठ की जालिम दोपहरी में अक्सर लोग दनान में या पेड़ के नीचे ऊँघ रहे थे| बबलू के कंधे पर बैठ कर हमने नीचे की डाली पकड़ ली, और फिर पेट के बल डाली के ऊपर | एक पका हुआ शरीफा थोड़ी दूर लटका हुआ था, उसे पाने के लिए एक पतली डाली पर चढ़ता हुआ धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा | लगभग पांच इंच की दूरी पर लटके शरीफे को पकड़ने के लिए ज्यों ही थोडा सा जोर लगाया की अगले ही पल मैं शरीफा और वो खोखली डाली एक साथ
धराम से जमीन पर आ गिरे | अन्दर से मुखिया जी की कड़क आवाज कानों से टकराई- हम बेतहाशा भागे | पिछवाड़े की गली से जब भाग रहे थे तो  कूड़े करकट की ढेर में पड़ा एक शीशा पैर में चुभ  गया | भागते- भागते मुझे चुभन का एहसास हुआ| पैर खून से भीग चूका था| खून देख कर मैं भी डर गया और फफकने लगा| बबलू थोडा हिम्मती था, मुझे जोर से गला लगाते हुए कहता है तुम चिंता मत करो "मेरे पास दवा है"| अश्रुपूर्ण आँखों से जब मैंने दवा की मांग की तो उसने पहले मुझे शांत किया फिर वैद्य जी वाले वाले विश्वास के साथ उसने मुझे नुस्खा बताया  "इस पर पेशाब कर दो खून बहना बंद हो जायेगा और दर्द भी कम हो जायेगा" | मैंने भी वैद्य जी की बात मान ली| आज भी मैं उसकी दोस्ती और उस पेशाब दोनों  की गर्माहट महसूस कर सकता हूँ | कुछ ही देर में वो आंसू  मीठे शरीफे के आगे फीके पर गये थे | ओ दोस्ती और वो चोरी अब भी याद है | "
     इसी तरह की दो और  घटनाये याद आती है |
           बगल के सोनू चाचा हमारे मास्टर हुआ करते थे | दो अंको के  गुना वाले दस सवाल उन्होंने दिए थे | मैं भी बड़ा बहादुर निकला - दस के दसो सवाल गलत! सोनू चाचा ने कॉपी के साथ मुझे घर भेज दिया, बाबू जी के पास! यह तीसरी बार था जब मुझे भगाया गया था | बाबू जी के लिए इस बार असहनीय था- मुझे सजा सुनाई गयी -एक सौ उठक बैठक की | बाबू जी डंडा और जबरदस्ती का गुस्सा लिए सामने खड़े थे| पचास पहुँचते पहुँचते मैं हार मानने लगा था | "चेहरा एकदम लाल, आँखों से आंसू रुकने का नाम नही ले रहा था, दबी आवाज में मैं सिसक रहा था | हर एक गिनती के साथ जब मैं बैठता तो उठने का दिल नही करता था| पर बाबू जी सामने थे- एक हाथ में डंडा और दुसरे में कॉपी लिए | खुस्किस्मती से माँ किसी काम से दलान में आयी | मेरी हालत देखते ही सब समझ गयी | दौर कर मुझे गले लगाया, वहीँ गोद में बिठा कर आँचल से पसीना पोछने लगी | मैं जोर से माँ से चिपट गया, अब मैं जोर जोर से रो रहा था | अब बारी बाबू जी की थी | मेरी माँ - एक निडर, जबान की तेज, गाँव की एक अख्खड़ महिला, नारियल की तरह अन्दर से एकदम मुलायम | बाबू जी पर भड़क पड़ी- "खुद कौन से बैरिस्टर हैं जो बच्चों पर रौब जमाये फिरते हैं , वैसे ही कमजोर है मेरा बच्चा मारने पर तुले हैं "| मेरे बाबू जी खड़े थे -नारी शक्ति के सामने मूक और बेबस ! माँ की हथेली की गर्माहट मैं कैसे भूल सकता हूँ !
            महीने बीत गये और स्कूल की हिंदी निबंध प्रतियोगिता में मैं जब प्रथम आया तो सोनू चाचा ने मुझे एक चवन्नी इनाम में दिया | घर आ कर वो चवन्नी बाबू जी को दिखाया | मेरी सफलता से बाबू जी बहुत  खुश हुए | जेब टटोल कर  एक अट्ठन्नी निकाली और मुझे थमाते हुए कहा "वो चव्व्न्नी जिसके तुम हक़दार हो और ये अट्ठन्नी जो मैं अपने प्यार और प्रोत्साहन के रूप में तुम्हे दे रहा हूँ" | ये कहते हुए उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और गले से लगा लिया | मुझे लगा मैंने गोल्ड मेडल जीत लिया हो, मुझे अब भी याद है |  उस बारह आने में ही मैंने पूरा जहाँ पा लिया था | चार आने की इमली की खट्टी गोली, चार आने का दस लेमन चूस और चार आने का मलाई बरफ | मेरी और बबलू की बड़ी वाली पार्टी थी उस दिन | हम खुश थे |
       अब भी भागते हुए जिन्दगी में जब पीछे मुर कर देखता हूँ तो वो सारी चीजें वापस खींचती है | जब भी चोट लगती है तो आँखों में आंसू ढूंढता हूँ | मैं रोना चाहता हूँ पर रो नहीं पाता | दर्द के पल में वैसे अजीब नुस्खे कहाँ कोई सुझाता है | बबलू की बहुत याद आती है उन पलों में | कभी कभी माँ से चिपटने का दिल  करता है पर कहाँ मिल पाता हूँ | नरम हथेली और भीगे आँचल की बहुत याद आती है | बाबू जी अब डंडे नही लगाते पर भटके हुए राह पर जब चलता हूँ तो बाबू जी के डंडे की बहुत याद आती है | उस मीठे दर्द को फिर से महसूस करना चाहता हूँ | कई बार जीतने का मौका मिला है पर बाबू जी के अट्ठन्नी को बहुत  मिस करता हूँ | भागते दौरते इस जवानी में मैं अपना बचपन फिर से पाना चाहता हूँ - मैं एक बार फिर जीना चाहता हूँ |








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2 comments:

  1. Really, Fantastic, Amazng, Fantabulous...
    Nc way f writing n
    I liked d way 2 sharing ur swt memories f chilhood.
    Sch me, v cnt go bck in dose swt moments, bt, whneva v remembr dt moments, v lost in dt...
    Wo bcchpn ki shaitaaniya, wo khatte-meethe pal,
    wo maa ka pyaar, papa ka dular..
    yae to rh jati h hmare bcchpn ki yaadein..
    Inhe pdh kr too mjhe v apna bcchpan yaad aa gya:)
    Vl rqst u 2 write sm more stories... So, many reader like me cn read n cn njoy ur stories..
    By:-
    Shalinee....

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  2. awesome tale...showing the importance of childhood in life and the typical behavior of father and mother with the everlasting affection as well the friendship of the dearest friend...
    GREAT WORK AJEET...:)

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