Wednesday, March 28, 2012

मैं कौन हूँ ?

             
मैं कौन हूँ ?
साड़ी में लिपटी, खुद में सिमटी
हज़ारों सवाल खुद में समेटे ,
क्या सिर्फ एक शब्द हूँ?
या...
वर्षों से तुझे अपने खून पर पालने वाली         
अपने माथे पर तुझे सँभालने वाली
मैं जननी हूँ ...
या..
तेरी सेविका हूँ, दासी हूँ, साथी, सहचर या अर्धांगिनी हूँ...
या दहेज़ की आग में जलने वाली कोमल सुशिल महज एक कन्या हूँ ?
मैं ही बहन हूँ, बेटी हूँ....
मैं वीणा हूँ, मैं संगीत हूँ...
मैं एक नदी हूँ, मर्यादाओं की बांध में बंधी
परम्पराओं की बेरियों में जकड़ी, मैं बेबस हूँ
इन सब से अलग मैं कुछ और भी हूँ
मैं प्यास हूँ, मैं जरूरत हूँ
मैं बिकाऊ हूँ... जब कुछ भी नही तो महज एक सामान हूँ
मैं पीड़ित हूँ! मैं अभिशप्त हूँ!

इस छोड़ से उस छोड़ तक
सागर के मंथन में
खुशियों के आँगन में
तेरे साथ वनवास में
दुखों के दलदल में
हमेशा तो रही हूँ तेरे साथ... फिर भी मैं क्यूँ अभिशप्त हूँ?

ये आज की व्यथा नही है
निर्लज्ज सभा में मैं ही  क्यूँ लुटू?
कौड़ी के भाव मैं ही  क्यूँ बिकुं?
आज तो  कृष्ण भी नही हैं... फिर किसकी गुहार करूँ मैं?
युगों तक पथ्थरों में क्यूँ बन्धुं मैं?
दहेज़ की आग में क्यूँ जलूं  मैं?
पूरी जिन्दगी अपने ही घर में क्यूँ न रहूँ मैं?
ये रस्मों रिवाज कब तक सहूँ मैं?
तेरी पौरुश्ता की निशानी लिए कहाँ कहाँ गिरुं मैं?
तुझे मर्यादा पुरुषोत्तम कैसे कहूँ मैं?
पुरुषों में उत्तम राम ही जब नासमझ हों.... तो यह प्रश्न  किस से करूँ मैं?




4 comments:

  1. meri baat .............no bakwas
    must read.............:)

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  2. no words... it simply one of the best poem i read on femniness... super hai... keep writng :)

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  3. excellent.....again i am speechless...tumhari ab tak ki sari rachnao(sari behtareen hai)par un sab me se sarvsresth hai ye....bilkul dil choo liya....matured poem....good...keep going ...

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  4. kafi achha hai....pr kv ise gahrai se mahsoos kr ke dekho ki kya tum in bediyon ko htane k liye koi kadam utha skte ho ya nii....!!!!!!!
    waise "all the best".keep on writing...!!!!

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