"ढह गया वह तो जुटा कर ईट पत्थर कंकरों को
एक अपनी शांति कि कुटिया बनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीया जलाना कब मना है "
हरिवंश राय बच्चन
देश कि वर्तमान राजनैतिक स्थितियों से आहत और निराश जन्मान्यों को समर्पित अपनी कुछ पंक्तियाँ !!!!
कुछ बात अभी भी बाँकी है
टूटे शब्दों में कहो न ये कि रात अभी भी बाँकी है
बिक गए ख़ाक के मोल कई ईमान यहाँ दुकानों में,
अपनी ही माँ के रक्त भरे, पी गए यहाँ पैमानों में
पर अपनी पौरुश्ता भूल चुके, भटके ओ उद्दंड पुरुष... आ तुझको ये बतला दूँ कि
सिक्कों में न तौल सको, वो जात अभी भी बाकी है
क्या हुआ कि कल कुछ बिगड़ गया ?
अपना घर भी कुछ उजड़ गया
पलकों में बांधे कुछ सपने थे ....
उन में एक-आध बिछड़ गया
कुछ कायरता के पुतलों से
अपना भी पाला पड़ गया ....
पर पौआ पिए डगमग डगमग चलते ओ उद्दंड पुरुष.... आ तुझको ये बतला दूँ कि
चरणों में शीश चढ़ा दे जो , वो जज्बात अभी भी बाकी है
कुछ उनकी चालाकी थी, कुछ मेरी भी नादानी थी
जो फँसे थे उन बातों में वो बात बड़ी बेमानी थी
फिर मिलना है कल उनसे कि
कुछ सवालात अभी भी बाकी है
मेरी मानो ओ उद्दंड पुरुष
मानवता के अखाड़ों में, दो दो हाथ अभी भी बाकी है
पर मत कहना मुझसे ये कि रात अभी भी बाकी है....
मैं कहता तुझसे ओ उद्दंड पुरुष कि....
मुरझाई पलकों में, विश्वास अभी भी बाकी है
उलटी धारा खेने वाले कुछ युवकों का साथ अभी भी बाकी है
मत हो निराश ओ भटके ज्ञानी.
यह कालिमा कुछ पल का है, प्रभात अभी भी बाकी है ....
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ReplyDeletewo ehsas abhi bhi baki hai
ReplyDeletemeri unmadakta ki lahro ko sant kare
wo mulakat abhi bhi baki hai
kuch khas abhi bhi baki hai
kuch bat abhi bhi baki hai...........