Monday, December 31, 2012

जनवरी की वो पहली सुबह

कल ही तो था जब लोगों से बचते बचाते हमारी नजरें टकराई थी। जनवरी की पहली सुबह थी वो जब आँखों से मैंने कुछ कहा था तुझे। तू भी कहाँ कम थी। एक बार तो शर्म से आँखें झुकी थी पर फिर से पलकें यूँ उठी मानो मेरे प्यार के current के लिए उन आँखों में कोई resistance ही न हों। तेरी आँखों की हौसला अफजाई से हिम्मत बढ़ी थी मेरी। पर गणित की probability चाहे जितना भी साथ दे लें पर आँखों के प्यार को होंठों तक लाने में सब की फटती है। मेरी भी फटी थी। लुकाछिपी का यह खेल महीने भर चलता रहा पर बात पहले पड़ाव से आगे न बढ़ सका। जनवरी की सर्दी में ठिठुरता कंपकपाता मेरा प्यार तेरे यादों की रजाई ओढ़े खुद में ही सिमटा रहा।
आहिस्ता आहिस्ता दिन बीतते गये और फ़रवरी मार्च का महीना आ गया।
मौसम खिल चुका था। हमारा स्कूल शहर से काफी दूर था। यहाँ मौसम और भी रूमानी लगता। हवा में आम के मँजर की भीनी भीनी खुशबू फ़ैल रही थी। मेरा प्यार दिन-ब-दिन जवान हो रहा था। आँखें जाने अनजाने गुस्ताखियाँ कर बैठती थीं। मेरी बदमाशियों से  तेरा चेहरा खिल सा जाता था। कसम से कहता हूँ- आज भी कॉलेज में मिले इक्के दुक्के A grade से भी उतनी ख़ुशी नही मिलती है जितनी तेरे एक smile से मिलती थी।

मुझे याद है अप्रैल का वो महीना। आने वाले exam ने हवा का temperature बढा सा दिया था। Maths कि क्लास में sir ने आपका एक सवाल मेरी ओर लुढका दिया। R D SHARMA और R S AGGARWAL से रटे  हुए सारे theorems की कसम खा कर मैं कहता हूँ -ऐसा कुछ भी नही था कि मैं वो सवाल नही कर सकूँ। पर पता नही क्यूँ सवाल सुलझाने की चाहे जितनी भी कोशिश मैं करता मैं उतना ही उलझ सा जाता था। Practically speaking- वो सवाल थी या तेरी उलझी लटें ये मैं समझ ही नही पा  रहा था। 
"तुम मेरे पास थीऔर सवाल मेरे सामने "
तू भी एक अनसुलझी पहेली थी मेरे लिए। मन ही मन मैं तुम्हे impress करने की सौ जुगत भिड़ा रहा था। पर सच कहता हूँ एक भी जुगाड़ फिट नही बैठ रहा था। मैं आज भी यह सोच कर disappoint हो जाता हूँ कि आज कल हर आँडू- पांडू और झंडू आदमी के पास मिल जाने वाला AXE का यह DEO उस समय उतना famous क्यूँ नही था। 

खैर maths के क्लास में हुई उस बेइज्जती को मैं अपना एक बड़ा achievement मानता हूँ। Occasion चाहे जो भी रहा हो पर तुम आधे घंटे तक मेरे सामने  मुझसे डेढ़ फिट की  दूरी पर बैठी रही। मैं सवाल में कम और तुझमे ज्यादा ही उलझा हुआ था। उस दिन ही मैंने बड़े गौर से देखा था तुझे। तेरे होंठ के दाहिने करवट में एक छोटा सा तिल है। 
इम्तेहान के मौसम बीत गए। गर्मी की छुट्टी में जलती दोपहरी में आम के बगीचे में कोयलें कूका करती थीं। मैं बेचैन सा हो गया था। दोस्त से एक सेकंड हैण्ड वॉकमेन खरीद ली। सच कहता हूँ अल्ताफ रजा के गानों से दिल में एक टीस सी उठती थी।
 शेरो-शायरी का एक दौर चल पड़ा था। तेरी यादों में लिखे हर टूटे-फूटे नज्म को आज भी डायरी में  सहेज कर रखा है मैंने। 
फिर उसके बाद तो कई सावन आए और गए। पतझड़ और बसंत का आना जाना लगा रहा। जनवरी की पहली सुबह भी देखने को मिली पर वो प्यारी सी सुबह फिर नही मिली

वैसे तो life में fuck और shit होते रहते हैं। पर देखो ना जिन्दगी कितनी बदल गयी है। Lovestory के दूसरे ही paragraph में तेरे प्यार को grade की तराजू में तौल दिया था मैंने। ऐसी गुस्ताखी मैं अक्सर ही करता रहता हूँ। 
पर एक बात बड़ी वफ़ा के साथ कह सकता हूँ। 8th क्लास में ही स्कूल के health register से तेरी एक फोटो चुराई थी मैंने। अब भी purse के एक कोने में बड़े सलीके से तेरी वो फोटो रखता हूँ मैं। 8 साल पुरानी black and white फोटो थोड़ी धुंधली पड़ गयी है। पर तेरे आँखों की चमक अब भी बरकरार है। मेरी आँखें आज भी गुस्ताखियाँ करती हैं और तू आज भी मुस्कुराती है। आज भी कंपकपाती ठंड में तेरी यादें चाय की चुस्की सी फुर्ती पैदा करती हैं ।
 
(P.S: उसी पर्स में कई बार माँ- बाबू जी की फोटो भी रखी थी मैंने। पर इक्के दुक्के सिम-कार्ड के लिए जब तब वो फोटो कुर्बान होता रहा। एक अच्छी बात ये है की तेरे VOTER  ID CARD का Xerox नही है मेरे पास :) )