जब ज़िंदगी की बची खुची साँसें मैं गिन रहा होऊंगा
मेरी मुर्छित ज़िंदगी जब सूख रही होंगी
आँखें शून्य में पथराई मालूम पड़ेंगी
हड्डियाँ शरीर के उभारों को परिभाषित करेंगी
तो तू किसी मंदिर में जा कर मेरे लिए दुआ ना करना प्रिये,
यूँ ही किसी मयख़ाने में जोर-जोर से मेरी यह अंतिम कविता दोहराना
शायद मैं फिर से जी लूँगा
क्यूँ कि,कविताएँ इस शरीर का ईंधन है
दर्द के उन अंतिम क्षणों में
मैं दो प्रेमियों की परिभाषा लिख रहा होऊंगा
मैं दो प्रेमियों की परिभाषा लिख रहा होऊंगा
दर्द और मौत दो प्रेमी हैं
जो शापित हैं आजीवन कभी ना मिलने को,
दर्द ही मौत है
और मौत ही दर्द
दो प्रेमियों की भाँति-एक दूसरे के प्रतिबिंब
और पूरक भी।