Saturday, August 10, 2013

"बकैती"

बकैती जो एक मजा है
बुध्धिजिवियो के लिए एक सजा है
हम जैसो के जीने की वजह है
"बकैती" जिसमे छुपा कहीं मेरा एक बचपन है
जवानी का पागलपन है, बुढ़ापे का सठियापन है

बकैती जीवन के सूनेपन में एक संगीत है
यह धुन है, सुकून है, साज है, हँसी का राज है
यह हँसी है, दर्द है, तड़प है
आँसू की एक नदी है
जो सरस्वती सा चुपचाप अंतर्मन में बहती है

यह छलावा है, दिखावा है, नाटक है, ड्रामा है
रंगमंच पर दांत निपोड़े खड़ा एक पात्र है
यह झूठ है, और इंसान का एक सच भी

intellectuals के फ़लसफो से जब मन थक जाता है
शरीर में एक तपन सा, बुख़ार सा होता है
"बकैती" माँ के हाथ के काढ़े सा असर करती है

बकैती
हाँ वही बकैती, जिसमे हल्दी है,तुलसी है
कड़वापन है, बेवकूफ़ी का दो चुटकी नमक है
सच्चाई की दो छोटी काली मिर्च है
लड़कपन का एक टुकड़ा अदरक भी है

इसमें सच्चाई है पर अच्छाई नहीं है
"बकैती जो एक इलाज है और एक बिमारी भी"

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